पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२१६

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सत्यहरिश्चंद्र

डा०---

हम माँग में लाल-लाल लोहू का सेंदुर लगावेगी।
हम नस के तागे चमड़े का लहँगा बनावेंगी॥

सब---हम धज से सज के बज के चलेंगे चमकेंगे चम चम चम।

पि०---

लोहू का मुँह से फर्र फर्र फुहारा छोड़ेंगे।
माला गले पहिरने को अँतड़ी को जोड़ेंगे॥

डा०---

हम लाद के औंधे मुरदे चौकी बनावेंगी।
कफन बिछा के लड़कों को उस पर सुलावेंगी॥

सब---हम मुख से गावेंगे ढोल बजावेगे ढम ढम ढम ढम ढम।

( वैसे ही कूदते हुए एक ओर से चले जाते हैं )

हरि०---( कौतुक से देखकर ) पिशाचो की क्रीड़ा-कुतूहल भी देखने के योग्य है। अहा! यह कैसे काले-काले झाड़ू से सिर के बाल खड़े किए लंबे-लंबे हाथ-पैर विकराल दाँत लंबी जीभ निकाले इधर-उधर दौड़ते और परस्पर किलकारी मारते हैं मानो भयानक रस की सेना मूर्तिमान होकर यहाँ स्वच्छंद विहार कर रही है। हाय-हाय! इनका खेल और सहज ब्यौहार भी कैसा भयंकर है। कोई कटाकट हड्डी चबा रहा है, कोई खोपड़ियों में लहू भर-भर करके पीता है, कोई सिर का गेंद बनाकर खेलता है, कोई अँतड़ी निकाल गले में डाले है और चंदन की