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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२२२

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भारतेंदु-नाटकावली

तब देवताओं ने माया से आपको स्वप्न में हमारा रोना सुनाकर हमारा प्राण बचाया।

हरि०---( आप ही आप ) अरे यही सृष्टि की उत्पन्न, पालन और नाश करनेवाली महाविद्याएँ हैं, जिन्हें विश्वामित्र भी न सिद्ध कर सके। ( प्रगट हाथ जोड़कर ) त्रिलोक-विजयिनी महाविद्याओं को नमस्कार है।

महावि०---महाराज! हम लोग तो आपके वश में हैं। हमारा ग्रहण कीजिए।

हरि०---देवियो, यदि हम पर प्रसन्न हो तो विश्वामित्र मुनि की वशवर्तिनी हों, उन्होंने आप लोगो के वास्ते बड़ा परिश्रम किया है।

महावि०---धन्य महाराज! धन्य! जो आज्ञा।

[जाती है

( धर्म एक बैताल के सिर पर पिटारा रखवाए हुए आता है )

धर्म---महाराज का कल्याण हो, आपकी कृपा से महानिधान* सिद्ध हुआ। आपको बधाई है। अब लीजिए इस रसेंद्र को।

याही के परभाव सो अमर देव-सम होइ।
जोगी जन बिहरहिं सदा मेरु-शिखर भय खोइ॥


  • महानिधान बुभुक्षित धातुभेदी पारा, जिसे बावन तोला पाव रत्ती

कहते हैं।