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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२२८

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भारतेंदु-नाटकावली

हरि०---( घबड़ाकर ऊपर देखकर ) अरे यह कौन है? कुलगुरु भगवान् सूर्य अपना तेज समेटे मुझे अनुशासन कर रहे हैं। ( ऊपर देखकर ) पितः, मैं सावधान हूँ। सब दुःखों को फूल की माला की भाँति ग्रहण करूँगा।

( नेपथ्य में रोने की आवाज सुन पडती है )

हरि०---अरे अब सबेरा होने के समय मुरदा आया! अथवा चांडाल-कुल का सदा कल्याण हो, हमें इससे क्या?( खबरदार इत्यादि कहता हुआ फिरता है )

( नेपथ्य में )

हाय! कैसी भई! हाय बेटा! हमें रोती छोड़ के कहाँ चले गए! हाय-हाय रे!

हरि०---अहह! किसी दीन स्त्री का शब्द है, और शोक भी इसको पुत्र का है। हाय हाय! हमको भी भाग्य ने क्या ही निर्दय और बीभत्स कर्म सौंपा है! इससे भी वस्त्र मॉगना पडेगा।

( रोती हुई शैव्या रोहिताश्व का मुरदा लिए आती है )

शैव्या---( रोती हुई ) हाय बेटा! अब बाप ने छोड़ दिया, तब तुम भी छोड़ चले! हाय! हमारी बिपत और बुढ़ौती की ओर भी तुमने न देखा! हाय! हाय रे! अब हमारी कौन गति होगी! ( रोती है )