शैव्या---हाय! इस कुसमय में आर्यपुत्र की यह कौन स्तुति करता है! वा इस स्तुति ही से क्या है, शास्त्र सब असत्य हैं, नहीं तो आर्यपुत्र से धर्मी की यह गति हो! यह केवल देवताओ और ब्राह्मणों का पाखंड है।
हरि०---( दोनों कानो पर हाथ रखकर ) नारायण! नारायण! महाभागे! ऐसा मत कहो। शास्त्र, ब्राह्मण और देवता त्रिकाल में सत्य हैं। ऐसा कहोगी तो प्रायश्चित्त होगा। अपना धर्म विचारो। लामो मृतकम्बल हमें दो और अपना काम आरंभ करो। ( हाथ फैलाता )
शैव्या---( महाराज हरिश्चंद्र के हाथ में चक्रवर्ती का चिह्न देखकर और कुछ स्वर कुछ प्राकृति से अपने पति को पहचानकर ) हा आर्यपुत्र! इतने दिन तक कहाँ छिपे थे? देखो अपने गोद के खेलाए दुलारे पुत्र की दशा। तुम्हारा प्यारा रोहिताश्व देखो अब अनाथ की भाँति मसान में पड़ा है। ( रोती है )
हरि०---प्रिये! धीरज धरो, यह रोने का समय नहीं है। देखो सबेरा हुआ चाहता है, ऐसा न हो कि कोई आ जाय और हम लोगों को जान ले, और एक लज्जामात्र बच गई है वह भी जाय। चलो कलेजे पर सिल रख कर अब रोहिताश्व की क्रिया करो और आधा कंबल हमको दो।