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प्रेमजोगिनी
नाटिका
( नांदी पाठ )
भरित नेह नव नीर नित बरसत सुरस अथोर।
जयति अपूरब घन कोऊ लखि नाचत मन मोर॥
और भी---
जिन तृन सम किय जानि जिय कठिन जगत-जंजाल।
जयतु सदा सो ग्रंथ कवि प्रेमजोगिनी बाल॥
( मलिन मुख किए सूत्रधार और पारिपार्श्वक आते हैं )
सूत्र--( नेत्र से आँसू पोंछ और ठंढी सॉस भरकर ) हा! कैसे ईश्वर पर विश्वास आवे!
पारि०---मित्र, आज तुम्हें क्या हो गया है और क्या बकते हो और इतने उदास क्यों हो?
( सूत्रधार के नेत्र से जल की धारा बहती है और रोकने से भी नहीं रुकती )
पारि०---( अपने गले से सूत्रधार को लगाकर और आँसू पोंछकर ) मित्र, आज तुम्हें हो क्या गया है? यह क्या सूझी है? क्या आज लोगों को यही तमाशा दिखाओगे?