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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२४९

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भारतेंदु-नाटकावली

रखकर आदर नहीं देता और खल लोग तेरी नित्य एक नई निंदा करते हैं और तू संसारी वैभव से सूचित नहीं है; तुझे इससे क्या, प्रेमी लोग जो तेरे और तू जिन्हें सरबस है वे जब जहाँ उत्पन्न होंगे तेरे नाम को आदर से लेगे और तेरी रहन-सहन को अपनी जीवनपद्धति समझेंगे। ( नेत्रों से आँसू गिरते हैं ) मित्र, तुम तो दूसरों का अपकार और अपना उपकार दोनो भूल जाते हो; तुम्हें इनकी निंदा से क्या? इतना चित्त क्यों तुब्ध करते हो? स्मरण रक्खो ये कीड़े ऐसे ही रहेंगे और तुम लोकवहिष्कृत होकर भी इनके सिर पर पैर रखके विहार करोगे। क्या तुम अपना वह कवित्त भूल गए---"कहेंगे सबै ही नैन नीर भरि-भरि पाछे प्यारे हरिचंद की कहानी रहि जायगी।" मित्र मैं जानता हूँ कि तुम पर सब आरोप व्यर्थ है; हा! बड़ा विपरीत समय है। ( नेत्र से ऑसू बहते हैं )

पारि०---मित्र, जो तुम कहते हो सो सब सत्य है, पर काल भी तो बड़ा प्रबल है, कालानुसार कर्म किए बिना भी तो काम नहीं चलता।

सूत्र०---हॉ, न चले तो हम लोग काल के अनुसार चलेंगे, कुछ वह लोकोत्तर-चरित्र थोड़े ही काल के अनुसार चलेगा!!

पारि०---पर उसका परिणाम क्या होगा?