पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२५

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बिरादरी में भी इनका इतना मान था कि अनेक धनाढ्यों तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियो के रहते हुए भी यह बिरादरी के चौधरी बनाये गए थे। यह स्वामी गिरधर जी के शिष्य थे। जिस समय श्री गिरधरजी मुकंदराय को काशी लाए उस समय बरात आदि का सब प्रबंध इन्हीं ने किया था। इन्होंने अपने घर में भी श्री मदनमोहन जी की सेवा पधराई और इस मनोहर युगल मूर्ति की सेवा इस वंश में बड़े प्रेम से अब तक होती आ रही है। इनके कन्याएँ हुई थीं पर पुत्र एक भी नहीं हुआ। अवस्था भी अधिक हो चली थी। एक दिन यह श्री गिरधर जी के पास उदास मुख बैठे हुए थे। इनकी उदासी का कारण पूछने पर लोगो ने वही कारण बतला दिया। महाराज ने कहा कि—तुम जी छोटा मत करो। इसी वर्ष पुत्र होगा।" उसी वर्ष पौष कृष्ण १५ सं॰ १८९० को महाकवि गोपालचन्द्र का जन्म हुआ। श्री गिरधर जी की कृपा से जन्मलेने के कारण इन्होने कविता में अपना उपनाम गिरधरदास रखा। हर्षचन्द्र जी सं॰ १९०१ में परलोक सिधारे।

पिता की मृत्यु के समय गोपालचंद जी की अवस्था ग्यारह वर्ष की थी। इन्होने दो वर्ष बाद कुल प्रबंध अपने हाथ में ले लिया। इनका विवाह दिल्ली के शाहजादों के दीवान राय खिरोधर लाल की कन्या पार्वती गोपालचंद उपनाम गिरधरदास देवी से संवत् १९०० में हुआ था। इस विवाह से इनके चार संताने हुई—मुकुंदी बीबी, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, गोकुलचंद और गोविन्दी बीबी। प्रथम स्त्री की मृत्यु हो जाने पर इनका दूसरा विवाह सं॰ १९१४ में बाबू रामनारायण