पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२४

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फतेहचंदके प्रसिद्ध नगर सेठ बा॰ गोकुलचंद जी की कन्या से आपका विवाह हुआ। उनके कोई अन्य सन्तान न थी इससे यही उनके उत्तराधिकारी हुए। तत्कालीन सरकार में भी आपका बहुत सम्मान था। 'दवामी बंदोबस्त' के समय इन्होंने डंकन साहब की बहुत सहायता की थी, जिसके लिए उन्होंने इन्हें धन्यवाद दिया था। इनके बड़े भाई राय रत्नचंद बहादुर भी इनके आने के बाद काशी चले आए और राजसी-ठाट के साथ रामकटोरे वाले बाग में रहने लगे। इनके पुत्र रामचंद तथा पौत्र गोपीचंद की मृत्यु इन्हीं के सामने हो गई थी इससे फतेहचंद के पुत्र बाबू हर्षचंद्र ही इनके भी उत्तराधिकारी हुए। फतेहचंद की मृत्यु सम्वत् १८६७ के लगभग हुई।

बाबू हर्षचन्द्र काशी में काले हर्षचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध थे और इनका जनता तथा सरकार में बड़ा मान था। सं॰ १८६८ में पंसेरी के लिए जब गड़बड़ हुई थी तब बनारस के गबिन्स साहब ने इन्हें सरपंच और हर्षचंद्रबाबू जानकीदास तथा बाबू हरीदास को पंच माना था। काशी का बुढ़वा मंगल मेला बहुत प्रसिद्ध है। इसका आरम्भ भी इन्होंने ही किया था। पहले लोग वर्ष के अन्तिम मंगल को नाव से दुर्गा जी का दर्शन करने अस्सी तक जाते थे। बाद को इन नावों पर नाच होने लगा। तब काशीराज ने बा॰ हर्षचन्द के परामर्श से बुढ़वा मंगल को वर्तमान रूप दिया। यह काशी-नरेश के महाजन थे और इनका उस दरबार में बहुत सम्मान था।