पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२५२

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पहिला अंक

पहिला गर्भांक

स्थान---मंदिर का चौक

( झपटिया इधर-उधर देख रहा है )

झपटिया---आज अभी तक कोई दरसनी-परसनी नाहीं आए और कहाँ तक अभहिंन तक मिसरो नहीं आए, अभहीं तक नींद न खुली होइहै। खुलै कहाँ से? आधी रात तक बाबू किहाँ बैठ के ही-ही ठी-ठी करा चाहैं, फिर सबेरे नींद कैसे खुलै।

( दोहर माथे में लपेटे अाँखें मलते मिश्र आते हैं---देखकर )

भप०---का हो मिसिरजी, तोरी नींद नाहीं खुलती? देखो शंखनाद होय गवा, मुखियाजी खोजत रहे।

मिश्र---चले तो आईथे, अधियै रात के शंखनाद होय तो हम का करें! तोरे तरह से हमहू के घर में से निकस के मंदिर में घुस आवना होता तो हमहू जल्दी अउते। हियाँ तो दारा-नगर से आवना पड़त है। अबहीं सुरजौ नाहीं उगे।

झप०---भाई, सेवा बड़े कठिन है, लोहे का चना चबावे के पड़थै, फोकटै थोरे होथी।