यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३६
भारतेंदु-नाटकावली
पारि०---( स्मरण करके ) हाँ हॉ, वह नाटक खेलो जो तुम उस दिन उद्यान में उनसे सुनते थे। वह उनके और इस घोर काल के बड़ा ही अनुरूप है। उसके खेलने से लोगो को वर्तमान समय का ठीक नमूना दिखाई पड़ेगा और वह नाटक भी नई-पुरानी दोनों रीति मिलके बना है।
सूत्र०---हाँ हां प्रेमजोगिनी---अच्छी सुरत पड़ी---तो चलो योंही सही, इसी बहाने उनका स्मरण करें।
पारि०---चलो।
[ दोनों जाते हैं
( आधी जवनिका गिरती है )