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भारतेंदु-नाटकावली

बनिता०---भाग होय तो ऐसियौ मिल जायँ। देखो लाड़ली-प्रसाद के और बच्चू के ऊ नागरनी और बम्हनिया मिली हैं कि नाहीं!

धन०---गुरु, हियाँ तो चाहे मूड़ मुड़ाये हो चाहे मुँह में एक्को दाँत न होय पताली खोल होय, पर जो हथफेर दे सो काम की।

बनिता---तोहरी हमरी राय ई बात में न मिलिए।

( रामचन्द ठीक उन दोनों के पीछे का किवाड़ खोलकर आता है )

छक्कू जी---( धीरे से मुँह बना के ) ई आएँ। ( सब लोगों से जय श्रीकृष्ण होती है )

बालमु०---( रामचंद को अपने पास बैठा कर ) कहिए बाबू साहब, आजकल तो आप मिलते ही नहीं क्या खबगी रहती है?

रामचंद---भला आप ऐसे मित्र से कोई खफा हो सकता है? यह आप कैसी बात कहते हैं?

बालमु०---कार्तिक नहान होता न है?

रामचंद---( हँसकर ) इसमें भी कोई सन्देह है!

बालमु०---हँहँहँ फिर आप तो जो काम करेंगे एक तजवीज के साथ ऐं।