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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२५९

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प्रेमजोगिनी

( रामचन्द का हाथ पकड़ के हँसता है )

रामचंद---भाई ये दोनो ( धनदास और बनितादास को दिखा कर ) बड़े दुष्ट हैं। मैं किवाड़ी के पीछे खड़ा सुनता था। घंटों से ये स्त्रियो ही की बात करते थे।

बालमु०---यह भवसागर है। इसमें कोई कुछ बात करता है, कोई कुछ बात करता है। आप इन बातों का कहाँ तक खयाल कीजिएगा ऐं! कहिए कचहरी जाते हैं कि नहीं?

रामचंद---जाते हैं कभी-कभी---जी नहीं लगता, मुफत की बेगार और फिर हमारा हरिदास बाबू का साथ कुकुर-झौंझौं, हुज्जते-बंगाल, माथा खाली कर डालते हैं। खॉव-खॉव करके, थूँक-थूँक के, वीभत्स रस के आलंबन, सूर्यनंदन---

बालमु०---( हँसकर ) उपमा आप ने बहुत अच्छी दी और कहिए। और अंधरी मजिस्टरों* का क्या हाल है?

रामचंद---हाल क्या है सब अपने-अपने रंग में मस्त हैं। काशी परसाद अपना कोठीवाली ही में लिखते हैं, सहजादे


  • 'आनरेरी मैजिस्ट्रेट का पद और अधिकार दिया है, उनका नाम

यों है---कुँअर शंभूनारायण सिंह, बा० ऐश्वर्यनारायण सिंह, बा० गुरुदास मित्र, बा० हरिश्चद्र, राय नारायणदास, बा० विश्वेश्वर दास, डा० लाज़रस, मुं० बेणीलाल और दीवान कृष्ण कुँअर।' ( कवि-वचन-सुधा भाद्रपद शु० १५ सं० १९२३ )

भा० ना०---१०