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देखी तुमरी कासी, लोगो, देखी तुमरी कासी।
जहाँ बिराजै विश्वनाथ विश्वेश्वरजी अविनासी॥
आधी कासी भाट-भँडेरिया ब्राह्मन औ संन्यासी।
आधी कासी रंडी मुंडी रॉड खानगी खासी॥
लोग निकम्मे भंगी गंजड़ लुच्चे बे-बिसवासी।
महा आलसी झूठे शुहदे बे-फिकरे बदमासी॥
आप काम कुछ कभी करै नहिं कोरे रहैं उपासी।
और करे तो हँसैं बनावैं उसको सत्यानासी॥
अमीर सब झूठे औ निंदक करें घात विश्वासी।
सिपारसी डरपुकने सिट्टू बोलैं बात अकासी॥
मैली गली भरी कतवारन सड़ी चमारिन पासी।
नीचे नल से बदबू उबलै मनो नरक चौरासी॥
कुत्ते भुंकत काटन दौड़ै सड़क सॉड़ सों नासी।
दौड़ें बंदर बने मुछंदर कूदैं चढ़े अगासी॥
घाट जाओ तो गंगापुत्तर नोचै दै गल फाँसी।
करै घाटिया बस्तर-मोचन दे देके सब झाँसी॥
राह चलत भिखमंगे नोचै बात करै दाता सी।
मंदिर बीच भँड़ेरिया नोचै करै धरम की गाँसी॥
सौदा लेत दलालो नोचै देकर लासालासी।
माल लिए पर दुकनदार नोचै कपड़ा दे रासी॥