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भारतेंदु-नाटकावली

झूरी०---यार लोग तो रोजै कड़ाका करथै ऐ पैजामा।

गंगा०---ई तो झूठ कहथौ, सिंहा,

झूरी०---तू सच बोल्यो, मामा॥

गंगा---

तौ हैं का, तू मार-पीट के करथौ अपना कामा।
कोई का खाना, कोई की रंडी, कोई का पगड़ी-जामा॥

झूरी०---ऊ दिन खीपट दूर गए अब सोरहो दंड एकासी।

गंगा०---भूखे पेट कोई नहीं सुतता, ऐसी है ई कासी॥

झूरी०---जब से आए नए मजिस्टर तब से आफत आई। जान छिपावत फिरीथै खटमल---

दूकान०---ई तो सच है भाई॥

झूरी०---

ई है ऐसा तेज गुरू बरसन के देथै लदाई।
गोविंद पालक मेकलौडो से एकी जबर दोहाई॥
जान बचावत विपत फिरीथै घुस गइ सब बदमासी।

गंगा०---भूखे पेट तो कोइ नहीं सुतता, ऐसी है ई कासी॥

झूरी०---

तोरे आँख में चरबी छाई माल न पायो गोजर।
कैसी दून की सूझ रही है असमानों के उप्पर॥
तर न भए हौ पैदा करके, धर के माल चुतरे तर।
बछिया के बाबा पँडिया के ताऊ, घुसनि के घुसघुस झरझर॥
कहाँ की ई तूँ बात निकास्यो खासी सत्यानासी।
भूखे पेट कोई नहिं सुतता, ऐसी है ई कासी॥

( गाता हुआ एक परदेसी आता है )