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भारतेंदु-नाटकावली
दलाल---तब भी फोंक सऊड़े का मालवाड़ा कहाँ तक न लेऊचियै।
सुधा०---अब जो पलते पलते पलै।
वि० पंडित---यह इन्होंने किस भाषा में बात की?
सुधा०---यह काशी ही की बोली है, ये दलाल हैं, सो पूछते थे कि पंडितजी कहाँ उतरेंगे।
वि० पंडित---तो हम तो अपने एक संबंधी के यहाँ नीलकंठ पर उतरेंगे।
सुधा०---ठीक है, पर मैं आपको अपने घर अवश्य ले जाऊँगा
वि० पंडित---हॉ हॉ, इसमें कोई संदेह है? मैं अवश्य चलूँगा।
( स्टेशन का घंटा बजता है और जवनिका गिरती है )
इति प्रतिच्छवि--वाराणसी नामक दृश्य