पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२७९

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प्रेमजोगिनी

राजेन्द्र मित्र की बॉधी देवी---पूजा बाबू गुरु दास मित्र के यहाँ अब भी बड़े धूम से प्रतिवर्ष होती है। अभी राजा देवनारायणसिंह ही ऐसे गुणज्ञ हो गए है कि उनके यहाँ से कोई खाली हाथ नहीं फिरा। अब भी बाबू हरिश्चंद्र इत्यादि गुणग्राहक इस नगर की शोभा की भॉति विद्यमान हैं। अभी लाला बिहारीलाल और मुंशी रामप्रताप जी ने कायस्थ जाति का उद्धार करके कैसा उत्तम कार्य किया। आप मेरे मित्र रामचंद्र ही को देखिएगा। उसने बाल्यावस्था ही में लक्षावधि मुद्रा व्यय कर दी हैं। * अभी बाबू हरखचंद मरे हैं जो एक गोदान नित्य करके जलपान करते थे। कोई भी फकीर यहाँ से खाली नहीं गया। दस पंद्रह रामलीला इन्हीं काशी-वालो के व्यय से प्रति वर्ष होती है और भी हजारो पुण्यकार्य यहाँ हुआ ही करते हैं। आपको सबसे मिलाऊँगा आप काशी चलैं तो सही।

वि० पंडित---लाहोर क्यों गए थे?

सुधा०---( लम्बी सॉस लेकर ) कुछ न पूछिए योंही सैर को गया था।

दलाल---( सुधाकर से ) का गुरू। कुछ पंडितजी से बोहनी वाड़े का तार होय तो हम भी साथै चलूँचैं।

सुधा०---तार तो पंडित वाड़ा है कुछ विशेष नहीं जान पड़ता।


  • इतना विषय मैंने सत्य होने के कारण स्वयं दे दिया है। ( राधा कृष्णदास )