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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३

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अनुवचन

भारतेंदुजी की रचनाओं में से उनके नाटक विशेष लोकप्रिय हुए हैं और उनके दो संस्करण भी प्राप्त हैं। बा॰ राधाकृष्ण दास जी ने इनके लिखे नाटकों की संख्या बीस बतलाई है और भारतेंदुजी ने स्वयं स्वरचित 'नाटक' की सन् १८८३ ई॰ की आवृत्ति में सोलह नाटकों का नाम स्वकृत लिखा है। इसके बाद के संस्करण में दुर्लभबंधु, प्रेमयोगिनी, जैसा काम वैसा परिणाम बढ़ाए गए हैं। प्रथम मौलिक नाटक 'प्रवास' नाम से लिखा जा रहा था पर उसका कुछ ही अंश लिखा गया और वह भी अप्राप्य है। इसके अनंतर––'शकुंतला के सिवा और सब नाटकों में रत्नावली नाटिका बहुत अच्छी और पढ़ने वालों को आनंद देने वाली है, इस हेतु मैंने पहिले इसी नाटिका का तर्जुमा किया है। यह नाटिका सुप्रसिद्ध कवि श्रीहर्ष कृत है।' पर इस नाटिका के अनुवाद की केवल प्रस्तावना तथा विषकंभक ही प्राप्त हैं। भूमिका से इस अनुवाद के पूर्ण होने की ध्वनि निकलती है पर यह अब इतना ही प्राप्त है। माधुरी इनके मित्र राव कृष्णदेवशरण सिंह की कृति है। नवमल्लिका, जैसा काम वैसा परिणाम तथा मृच्छकटिक अप्राप्त हैं, इससे उनके विषय में कुछ नहीं कहा जा