पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४

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सकता। अतः इस संग्रह में भारतेंदुजी की सत्रह कृतियाँ संगृहीत हुई है जिनमें ६ अनूदित, ८ मौलिक तथा ३ अपूर्ण हैं।

इस संग्रह के दो भाग किए गए हैं, प्रथम में ऐसे नाटक संगृहीत हैं, जिनमें शृङ्गारिकता की मात्रा प्रायः नहीं सी है और ये नाटक विद्यार्थियो के पठन-पाठन के उपयुक्त हैं। श्री चंद्रावली नाटिका का शृङ्गार विप्रलंभ है अतः उसके कक्षाओं में सहपठन-पाठन में कोई बाधा नहीं पड़ेगी। दूसरे यह कि समग्र नाटक एक ही जिल्द में प्रकाशित कर देने से वह बेडौल पोथा हो जाता। दूसरे भाग में बचे हुए नाटक, नाटक नामक निबंध, शब्दकोष, प्रतीकानुक्रम आदि सम्मिलित कर दिए जाएँगे। संस्कृत, फारसी, अँग्रेजी आदि भाषाओ के उद्धरणों के अर्थ भी दिए गए हैं और कथादि भी संक्षेप में दिए जाएँगे। भूमिका का विशेष प्रथम भाग ही में दिया गया है और दोनों भागो में संगृहीत नाटको की आलोचना दोनों भाग के आरंभ में अलग अलग दे दी गई है। इस प्रकार यथाशक्ति इस संस्करण को उपादेय बनाने का प्रयत्न किया गया है और आशा है कि पाठकगण इससे लाभ उठाकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।

काशी,
ब्रजरत्नदास
चैत्र शुक्ल ९
सं॰ १९९२