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भारतेंदु-नाटकावली

चंद्रा०---हाँ सखी, और ( संध्या को दिखाकर ) या सखी को नाम का है?

बन०---याको नाम संध्या है।

चंद्रा०---( घबड़ाकर ) संध्यावली आई? क्या कुछ सँदेसा लाई? कहो कहो प्राणप्यारे ने क्या कहा? सखी बड़ी देर लगाई। ( कुछ ठहर कर ) संध्या हुई? संध्या हुई? तो वह बन से आते होंगे। सखियो, चलो झरोखों में बैठें, यहाँ क्यों बैठी हौ।

( नेपथ्य में चंद्रोदय होता है; चंद्रमा को देखकर )

अरे अरे वह देखो आया

( उँगली से दिखाकर )

देख सखी देख अनमेख ऐसो भेख यह
जाहि पेख तेज रबिहू को मंद ह्वै गयो।
'हरीचंद' ताप सब जिय को नसाइ चित
आनँद बढाइ भाइ अति छबि सों छयो॥
ग्वाल-उडुगन बीच बेनु को बजाइ सुधा---
रस बरखाइ मान-कमल लजा दयो।
गोरज-समूह-घन-पटल उघारि वह
गोप-कुल-कुमुद-निसाकर उदै भयो।

चलो चलो उधर चलो। ( उधर दौड़ती है ) बन०---( हाथ पकड़कर ) अरी बावरी भई है, चंद्रमा निकस्यो है कै वह बन सों आवै है?