पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३४९

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श्रीचंद्रावली

वाला है। जंगल में मोर नाचा किसने देखा। नहीं नहीं, वह सब देखता है, वा देखता होता तो अब तक मेरी खबर न लेता। पत्थर होता तो वह भी पसीजता। नहीं नहीं, मैंने प्यारे को इतना दोष व्यर्थ दिया। प्यारे, तुम्हारा दोष कुछ नहीं। यह सब मेरे करम का दोष है। नाथ, मैं तो तुम्हारी नित्य की अपराधिनी हूँ। प्यारे छमा करो। मेरे अपराधों की ओर न देखो, अपनी ओर देखो। ( रोती है )

माधवी---हाय-हाय सखियो! यह तो रोय रही है।

काममं०---सखी प्यारी रोवै मती। सखी तोहि मेरे सिर की सौंह जो रोवै।

माधवी---सखी, मैं तेरे हाथ जोड़ूँ मत रोवै। सखी हम सबन को जीव भरयो आवै है।

विला०---सखी, जो तू कहेगी हम सब करैगी। हम भले ही प्रियाजी की रिस सहैंगी, पर तोसूँ हम सब काहू बात सों बाहर नहीं।

माधवी---हाय-हाय! यह तो मानै ही नहीं। ( ऑसू पोंछकर ) मेरी प्यारी, मैं हाथ जोड़ूँ हा हा खाऊँ मानि जा।

काममं०---सखी यासों मति कछू कहौ। आओ हम सब मिलि कै विचार करैं जासों याको काम होय।