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भारतेंदु-नाटकावली

पिला०---सखी, हमारे तो प्रान ताइ यापैं निछावर हैं पर जो कछू उपाय सूझै।

चंद्रा०---( रोकर ) सखी, एक उपाय मुझे सूझा है जो तुम मानो।

माधवी---सखी, क्यों न मानैगी तू कहै क्यों नहीं।

चंद्रा०---सखी, मुझे यहाँ अकेली छोड़ जाओ।

माधवी---तो तू अकेली यहाँ का करेगी?

चंद्रा०---जो मेरी इच्छा होगी।

माधवी---भलो तेरी इच्छा का होयगी हमहूँ सुनै?

चंद्रा०---सखी, वह उपाय कहा नहीं जाता।

माधवी---तौ का अपनो प्रान देगी। सखी, हम ऐसी भोरी नहीं हैं कै तोहि अकेली छोड़ जायँगी।

विला०---सखी, तू व्यर्थ प्रान देने को मनोरथ करै है तेरे प्रान तोहि न छोड़ैगे। जौ प्रान तोहि छोड़ जायँगे तो इनको ऐसा सुंदर शरीर फेर कहाँ मिलैगो।

काममं०---सखी, ऐसी बात हम तूं मति कहै, और जो कहै सो सो हम करिबे कों तयार हैं, और या बात को ध्यान तू सपने हू मैं मति करि। जब ताई हमारे प्रान हैं तब ताई तोहि न मरन देंयगी। पीछे भलेई जो होय सो होय।

चंद्रा---( रोकर ) हाय! मरने भी नहीं पाती। यह अन्याय! माधवी---सखी, अन्याय नहीं, यही न्याय है।