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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३५२

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भारतेंदु-नाटकावली

काममं०---सखी, तू व्यर्थ क्यों उदास भई जाय है। जब तक सॉसा तब तक आसा।

माधवी---तौ सखी बस अब यह सलाह पक्की भई। जब ताई काम सिद्ध न होय तब ताई काहुवै खबर न परे।

विला०---नहीं, खबर कैसे परैगी?

काममं०---( चंद्रावली का हाथ पकड़कर ) लै सखी, अब उठि। चलि हिंडोरें झूलि।

माधवी---हॉ सखी, अब तौ अनमनोपन छोड़ि।

चंद्रा०---सखी, छूटा ही सा है, पर मैं हिंडोरे न झूलूँगी। मेरे तो नेत्र आप ही हिंडोरे झूला करते हैं।

पल-पटुली पै डोर-प्रेम की लगाय चारु
आसा ही के खंभ दोय गाढ़ कै धरत हैं।
झुमका ललित काम पूरन उछाह भरयौ
लोक बदनामी झूमि झालर झरत है॥
'हरीचंद' ऑसू दृग नीर बरसाइ प्यारे
पिया-गुन-गान सो मलार उचरत है।
मिलन मनोरथ के झोंटन बढ़ाइ सदा
बिरह-हिंडोरे नैन झूल्योई करत हैं॥

और सखी, मेरा जी हिंडोरे पर और उदास होगा।

माधवी---तौ सखी, तेरी जो प्रसन्नता होय! हम तौ तेरे सुख की गाहक हैं।