पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३५१

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श्रीचंद्रावली

काममं०---जान दै माधवी वासो मति कछु पूछै। आओ हम तुम मिलकै सल्लाह करै के अब का करनो चाहिए।

विला०---हॉ माधवी, तू ही चतुर है तू ही उपाय सोच।

माधवी---सखी, मेरे जी में तौ एक बात आवै। हम तीनि हैं सो तीनि काम बॉटि लें। प्यारीजू के मनाइबे को मेरो जिम्मा। यही काम सबमें कठिन है और तुम दोउन मैं सो एक याके घरकेन सो याकी सफाई करावै और एक लालजू सो मिलिबे की कहै।

काममं०---लालजी सों मैं कहूँगी। मै विन्नै बहुती लजाऊँगी और जैसे होयगो वैसे यासों मिलाऊँगी।

माधवी---सखी, वेऊ का करैं। प्रियाजी के डर सों कछू नहीं कर सकै।

विला०---सो प्रियाजी को जिम्मा तेरो हुई है।

माधवी---हाँ हाँ, प्रियाजी को जिम्मा मेरो।

विला०---तौ याके घर को मेरो।

माधवी---भयो, फेर का। सखी काहू बात को सोच मति करै। उठि।

चंद्रा०---सखियो! व्यर्थ क्यों यत्न करती हौ। मेरे भाग्य ऐसे नहीं हैं कि कोई काम सिद्ध हो।

माधवी---सखी, हमारे भाग्य तो सीधे हैं। हम अपने भाग्यबल सों सब काम करैंगी।