पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३५४

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चौथा अंक

स्थान---चंद्रावलीजी की बैठक

( खिड़की में से यमुनाजी दिखाई पड़ती हैं। पलँग बिछा हुआ, परदे पड़े हुए, इतरदान पानदान इत्यादि सजे हुए )

[ जोगिन * आती है ]

जोगिन---अलख! अलख! आदेश आदेश गुरू को! अरे कोई है इसघर में? कोई नहीं बोलता। क्या कोई नहीं है? तो अब मैं क्या करूँ? बैठूँ। क्या चिंता है। फकीरों को कहीं कुछ रोक नहीं। उसमें भी हम प्रेम के जोगी, तो अब कुछ गावै।

( बैठकर गाती है )

"कोई एक जोगिन रूप कियै।
भौंहैं बंक छकोहैं लोयन चलि-चलि कोयन कान छियैं॥
सोभा लखि मोहत नारीनर बारि फेरि जल सबहि पियैं।
नागर मनमथ अलख जगावत गावत काँधे बीन लियैं"॥


  • गेरूआ सारी, गहना सब जनाना पहिने, रंग साँवला। सेंदुर का

लंबा टीका बेंडा। बाल खुले हुए। हाथ में सरंगी लिए हुए। नेत्र लाल। अत्यंत सुंदर। जब-जब गावेगी सरंगी बनाकर गावेगी।

काफी।