ललिता---( बड़े आनंद से ) सखी बधाई है, लाखन बधाई है। ले होस में आ जा। देख तो कौन तुझे गोद में लिए हैं!
चंद्रा०---( उन्माद की भाँति भगवान् के गले में लपटकर )।
पिय तोहि राखौंगी भुजन मैं बॉधि।
जान न देहौं तोहि पियारे धरौंगी हिए सो नॉधि॥
बाहर गर लगाइ राखौंगी अंतर करौंगी समाधि।
'हरीचंद' छूटन नहिं पैहौ लाल चतुरई साधि॥
पिय तोहि कैसे हिये राखौं छिपाय?
सुंदर रूप लखत सब कोऊ यहै कसक जिय आय॥
नैनन में पुतरी करि राखौं पलकन ओट दुराय।
हियरे में मनहूँ के अंतर कैसे लेउँ लुकाय॥
मेरो भोग रूप पिय तुमरो छीनत सौतै हाय।
'हरीचंद' जीवनधन मेरे छिपत न क्यौं इत धाय॥
पिय तुम और कहूँ जिन जाहु।
लेन देहु किन मो रंकिन कों रूप-सुधा-रस-लाहु॥
जो-जो कहौ करौं सोइ-सोई धरि जिय अमित उछाहु।
राखौं हिये लगाइ पियारे किन मन माहिं समाहु॥
अनुदिन सुंदर बदन-सुधानिधि नैन चकोर दिखाहु।
'हरीचंद' पलकन की ओटैं छिनहु न नाथ दुराहु॥
पिय तोहि कैसे बस करि राखौं।
तुव दूग मै दूग तुप हिय मैं निज हियरो केहि बिधि नाखौं॥