पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३८४

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मुद्राराक्षस

एक चंद्रगुप्त मुरा नाम को नाइन स्त्री से। इसी से चंद्रगुप्त को मौर्य और वृषल भी कहते हैं। चंद्रगुप्त बड़ा बुद्धिमान था इसी से और आठो भाई इससे भीतरी द्वेष रखते थे। चंद्रगुप्त को बुद्धिमानी की बहुत सी कहानियाँ हैं। कहते हैं कि एक बेर रूम के बादशाह ने महानंद के पास एक कृत्रिम सिंह लोहे की जाली के पिंजड़े में बंद करके भेजा और कहला दिया कि पिंजड़ा टूटने न पावे और सिंह इसमें से निकल जाय। महानंद और उसके आठ औरस पुत्रो ने इसको बहुत कुछ सोचा, परंतु बुद्धि ने कुछ काम न किया। चंद्रगुप्त ने विचारा कि यह सिंह अवश्य किसी ऐसे पदार्थ का बना होगा जो या तो पानी से या आग से गल जाय, यह सोच कर पहले उसने उस पिंजड़े को पानी के कुंड में रखा और जब वह पानी से न गला तो उस पिंजड़े के चारो तरफ आग जलवाई, जिसकी गर्मी से वह सिंह, जो लाह और राल का बना था, गल गया। एक बेर ऐसे ही किसी बादशाह ने एक अँगीठी में दहकती हुई आग *, एक बोरा सरसो और


  • दहकती आग की कथा---'जरासंधमहाकाव्य" ( सर्ग ६ पद ६---१२ ) में भी है कि जरासघ ने उग्रसेन के पास अंगीठी भेजी थी शायद उसी से यह कथा निकाली गई हो।

सवैया---

रूप की रूपनिधान अनूप अँगीठी नई गढ़ि मोन मँगाई।
ता मधि पावकपुंज धरयो गिरिधारन बामें प्रभा अधिकाई॥