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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३८७

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भारतेंदु-नाटकावली

जायँ, किंतु खाते ही प्राण नाश हो जाय। विचक्षणा ने किसी प्रकार से महानंद को पुत्रो समेत यह पकवान खिला दिया, जिससे बेचारे सब के सब एक साथ परमधाम को सिधारे *।


  • भारतवर्ष की कथाओं मे लिखा है कि चाणक्य ने अभिचार से मारण का प्रयोग करके इन सभों को मार डाला। विचक्षणा ने उस

अभिचार का निर्माल्य किसी प्रकार इन लोगों के अग में छुला दिया था। किंतु वर्तमान काल के विद्वान् लोग सोचते हैं कि उस निर्माल्य में मंत्र का बल नहीं था, चाणक्य ने कुछ औषधि ऐसे विषमिश्रित बनाए थे कि जिनके भोजन वा स्पर्श से मनुष्य का सद्यः नाश हो जाय। भट्ट सोमदेव के कथा सरित्सागर के पीठलबक के चौथे तरग में लिखा है---योगानद को ऊँची अवस्था मे नए प्रकार की कामवासना उत्पन्न हुई। वररुचि ने यह सोचकर कि राजा को तो भोगविलास से छुट्टी ही नही है, इससे राजकाज का काम शकटार से निकाला जाय तो अच्छी तरह से चले। यह विचार कर और राजा से पूछकर शकटार को अंधे कुएँ से निकाल कर वररुचि ने मंत्रीपद पर नियत किया। एक दिन शिकार खेलने में गंगा में राजा ने अपनी पाँचों उँगली की परछाई वररुचि को दिखलाई। वररुचि ने अपनी दो उंगलियों की परछाईं ऊपर से दिखाई, जिससे राजा के हाथ की परछाई छिप गई। राजा ने इन सज्ञाओं का कारण पूछा। वररुचि ने कहा---आपका यह आशय था कि पाँच मनुष्य मिल कर सब कार्य साध सकते हैं। मैंने यह कहा कि जो दो चित्त एक हो जायँ तो पाँच का बल व्यर्थ है। इस बात पर राजा ने वररुचि की बडी स्तुति की। एक दिन राजा ने अपनी रानी को एक ब्राह्मण से खिड़की में से बात करते देखकर उस ब्राह्मण को मारने की आज्ञा की, किंतु अनेक कारणों से वह बच गया। वररुचि ने कहा कि आपके सब महल की यही दशा है। अनेक स्त्री-वेषधारी पुरुष महल में रहते हैं और