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भारतेंदु-नाटकावली

नटी---आर्य! यह पृथ्वी ही पर से चंद्रमा को कौन बचाना चाहता?


२ पूर्णिमा में चन्द्रग्रहण होने का कारण ऊपर लिखा ही है और पूर्णिमा में चन्द्रबिंब भी संपूर्ण उज्ज्वल होता है तभी चन्द्रग्रहण होता है।

३ जब कि पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण होता है, इससे पूर्णिमा में चन्द्रमा का और बुध का योग कभी नहीं होता ( क्योंकि बुध सर्वदा सूर्य के पास रहता है और पूर्णिमा के दिन सूर्य चन्द्रमा से छ राशि के अंतर पर रहता है, इसलिये बुध भी उस दिन चन्द्र से दूर ही रहता है )। यों बुध के योग में चन्द्रग्रहण कभी नहीं हो सकता। इति शिवम् सवत् १९३७ ज्येष्ठ शुक्ल १५ मंगल दिने, मगलं मंगले भूयात्।

शास्त्रीजी से एक दिन मुझे इस विषय में फिर वार्ता हुई। शास्त्री जी को मैंने मुद्राराक्षस की पुस्तक भी दिखलाई। इस पर शास्त्रीजी ने कहा कि मुझको ऐसा मालूम होता है कि यदि उस दिन उपराग का संभव होगा तो सूर्यग्रहण का क्योंकि बुधयोग अमावस्या के पास होता भी है। पुराणों में स्पष्ट लिखा है कि राहु चन्द्रमा का ग्रास करता है और केतु सूर्य का, और इस श्लोक में केतु का नाम भी है। इससे भी संभव होता है कि सूर्य-उपराग रहा हो। तो चाणक्य का कहना भी ठीक हुआ कि केतु हठपूर्वक क्यों चन्द्र को ग्रसा चाहता है अर्थात् एक तो चन्द्रग्रहण का दिन नहीं, दूसरे केतु का चन्द्रमा ग्रास का विषय नहीं क्योंकि नंद-वीर्यजात होने से चन्द्रगुप्त राक्षस का वध्य नहीं है। इस अवस्था में 'चंद्रम् असंपूर्णमंडलं' चन्द्रमा का अधूरा मंडल यह अर्थ करना पड़ेगा। तंब छंद में 'चंद बिब पूरन भए' के स्थान पर 'बिना चन्द्र पूरन भए' पढ़ना चाहिए।

बुध का बिंब प्राचीन भास्कराचार्य के मतानुसार छ कला पंद्रह विकला के लगभग है। परंतु नवीनों के मत से केवल दश विकला परम है।