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मुद्राराक्षस

बल सों करिहै ग्रास कह---

( नेपथ्य में )

हैं! मेरे जीते चंद्र को कौन बल से ग्रस सकता है?

सूत्र०----जेहि बुध रच्छत आप॥


के अध्यक्ष जगद्विख्यात पंडितवर बापूदेव शास्त्री को मैंने पत्र लिखा। क्योंकि टीकाकारों ने "चन्द्रमा पूर्ण होने पर" यही अर्थ किया है और इस अर्थ से मेरा जी नहीं भरा। कारण यह कि पूर्ण चन्द्र में तो ग्रहण लगता ही है, इसमें विशेष क्या हुआ? शास्त्रीजी ने जो उत्तर दिया है वह यहाँ प्रकाशित होता है।

श्रीयुत बाबू साहिब को बापूदेव का कोटिशः आशीर्वाद, आपने प्रश्न लिख भेजे उनका संक्षेप से उत्तर लिखता हूँ।

१ सूर्य के अस्त हो जाने पर जो रात्रि में अंधकार होता है यही पृथ्वी की छाया है और पृथ्वी गोलाकार है और सूर्य से छोटी है इसलिये उसकी छाया सूच्याकार शंकु के आकार की होती है और यह आकाश में चन्द्र के भ्रमणमार्ग को लाँघ के बहुत दूर तक सदा सूर्य से छ राशि के अंतर पर रहती है और पूर्णिमा के अंत में चन्द्रमा भी सूर्य से छ राशि के अंतर पर रहता है। इसलिए जिस पूर्णिमा में चन्द्रमा पृथ्वी की छाया में आ जाता है अर्थात् पृथ्वी की छाया चन्द्रमा के बिम्ब पर पड़ती है तभी वह चन्द्र का ग्रहण कहलाता है और छाया जो चन्द्रबिंब पर देख पड़ती है वही ग्रास कहलाता है। और राहु नामक एक दैत्य प्रसिद्ध है वह चन्द्रग्रहणकाल में पृथ्वी की छाया में प्रवेश करके चन्द्र की ओर प्रजा को पीड़ा करता है, इसी कारण से लोक में राहुकृत ग्रहण कहलाता है और उस काल में स्नान, दान, जप, होम इत्यादि करने से वह राहुकृत दूर होती है और बहुत पुण्य होता है।

भा० ना०---१९