पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४०

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भूले हुए हैं। उन्हें भारत के प्राकृतिक दृश्यों से अरब के बालुका- मय दृश्य तथा गांधी-कैप से टर्किश कैप ही अधिक पसन्द है। उनके काव्य में भी वही इश्क, हिज्र, वसाले-सनम के सिवा अधिक कुछ न था। उनके यहाँ भी अँगरेजो के आगमन के बाद कुछ नवीन परम्परा उत्थित हुई; पर वह भी धार्मिक रंग में रँगी हुई। अतः हिंदी में जो कुछ नवीनता आरम्भ हुई, वह अँगरेजो के आगमन तथा उनके सम्पर्क के बाद। ऐसा क्यों हुआ? एक बात और ध्यान देने योग्य है कि बँगला-साहित्य में हिन्दी से पहले ही नवीनता आ चुकी थी पर क्या उसका भी प्रधान कारण यही है कि बगालियो का अँगरेजों से सम्पर्क इस प्रांत में उनके आने से पहले का है।

कुछ सज्जन अँगरेजो के आगमन को इस उत्थान का कारण न मानकर उनकी कूट नीति को इसका कारण मानते हैं। भारत कभी कृतघ्न नहीं हुआ। भारत के इतिहास, पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, लिपि, प्राचीन संस्कृत-साहित्य, वर्तमान भाषाओं के नवीन उत्थान आदि सभी विषयो पर दृष्टि दौड़ाइए, तो सब में आपको भारत-सरकार तथा अँगरेज-युरोपियन साहित्य-प्रेमियों का सहयोग ही नहीं, वरन् उनके द्वारा मार्ग-प्रदर्शन भी दिखलाई पड़ेगा। न्याय-पूर्वक हमें इस सत्य को स्वीकार करना ही चाहिए।

हृदय में देश-प्रेम के अंकुरित होते ही तीन प्रकार के दृश्य---भूत, वर्तमान और भविष्य---आँखो के सामने आते हैं। पहले अपने पूर्व गौरव पर दृष्टि जाती है, फिर वर्तमान अवस्था का दृश्य सामने आता है। हृदय सोचता है, हम क्या थे और अब