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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४१

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क्या हैं। यदि वर्तमान अवस्था पहिले से उन्नत हुई, तो हृदय आशा से भरकर और भी आगे बढ़ने की पुकार करता है; यदि वह ज्यो की त्यों हुई, तो मन 'सम्पदा सुस्थिरं मन्ये न वर्धयति तत्र ताम्' समझकर प्रगति शील होने को अपना स्वर ऊँचा करता है और यदि वर्तमान अवस्था में देश पहले से गिरा हुआ दींखता है, तो देशभक्त का हृदय अपने देश-भाइयों को जाग्रत करने के लिए उनके पूर्व गौरव का वर्णन कर और उनकी वर्तमान दशा दिखाकर, आत्म-क्षोभ पैदाकर, उनको देशभक्ति की दीक्षा देता है। कभी-कभी देशभक्त कवि जब अपने भाइयों को अधिक गिरी दशा में पाता है और उनको जाग्रत करने में असफल होता ज्ञात होता है, तब वह सर्व आशामयी मूर्ति का बड़े विषाद के साथ अाह्वान करता है। भारतेन्दु जी ने भारत के इतिहास में अन्तिम दृश्य ही देखा था, इसलिए इस प्रकार की उनकी कविता में ये तीनो भाव भरे हैं। नीलदेवी के इस नैराश्यपूर्ण कथन पर कि 'अब तजहु वीरवर भारत की सब आशा' कुछ सज्जनों ने कटाक्ष किए है; पर 'भारत दुर्दशा' में हिन्दुस्तानी कपड़ा पहिनना' आदि जो उन्नति के उपाय भारतेन्दु जी ने बतलाए थे, उनको करने के लिए वाध्य करने को साठ वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो जाने पर भी आज तक पिकेटिंग आदि की आवश्यकता है।

भारतेन्दु जी ने कविता देवी की उस अनुपम, नित्य, अविनश्वर वीणा पर, जिससे वीरोल्लास मयी, भक्तिभाव-पूर्ण तथा श्रृंगार रसाप्लुत स्वर-लहरियाँ तरंगित हो चुकी थीं, नवीन देश-प्रेम पूर्ण ऐसा स्वर निकाला, जिसे उस काल के तथा बाद के