('अहो चंद्र पूर न भए' फिर से पढ़ता है )
( नेपथ्य में )
हैं! मेरे जीते चंद्र को कौन बल से ग्रस सकता है?
सूत्र०---( सुनकर ) जाना।
अरे अहै कौटिल्य
नटी---( डर नाट्य करती है )
सूत्र०---
दुष्ट टेढ़ी मतिवारो।
नंदवंश जिन सहजहि निज क्रोधानल जारो॥
चंद्रग्रहण को नाम सुनत निज नृप को मानी।
इतही पावत चंद्रगुप्त पै कुछ भय जानी॥
तो अब चलो हम लोग चलैं।
( दोनों जाते हैं )
क्रूरग्रहः स केतुश्चन्द्रमसं पूर्णमण्डलमिदानीम्।
अभिभवितुमिच्छति बलाद्रक्षत्येनं तु बुधयोगः॥
इस श्लोक का यथार्थ अर्थ यह है कि क्रूरग्रह सूर्य केतु के साथ चन्द्रमा के पूर्ण मंडल को न्यून करने की इच्छा करता है परंतु हे बुध! योग जो है वही बल से उस चन्द्रमा की रक्षा करता है। यहाँ बुध शब्द पंडित के अर्थ में संबोधन है, ग्रहवाची कदापि नहीं है। बुध शब्द को ग्रहार्थ में ले जाने से जो-जो अर्थ होते हैं वे सब बनौआ है। इति
सं० १९३७ वैशाख शुक्ल ५
ऊँचे है गुरु बुध कबी मिलि लरि होत विरूप।
करत समागम सबहि सों यह द्विजराज अनूप॥
आपका
प० सुधाकर