पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४०२

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प्रथम अंक

स्थान---चाणक्य का घर

( अपनी खुली शिखा को हाथ से फटकारता हुआ चाणक्य आता है )

चाणक्य---बता! कौन है जो मेरे जीते चंद्रगुप्त को बल से ग्रसना चाहता है?

सदा दंति के कुंभ को जो बिदारै।
ललाई नए चंद सी जौन धारै॥
अँभाई समै काल सो जौन बाढे।
भलो सिंह को दाँत सो कौन काढै?

और भी

कालसर्पिणी नंद-कुल, क्रोध धूम सी जौन।
अबहूँ बाँधन देत नहि, अहो शिखा मम कौन?
दहन नंदकुल-बन सहज, अति प्रज्वलित प्रताप।
को मम क्रोधानल-पतँग, भयो चहत अब पाप॥

शारंगरव! शारंगरव!!

( शिष्य आता है )

शिष्य---गुरुजी! क्या आज्ञा है?

चाणक्य---बेटा! मैं बैठना चाहता हूँ।