चाणक्य---( हर्ष से आप ही आप ) हमारे शत्रुओं का पक्षपाती क्षपणक है? ( प्रकाश ) उसका नाम क्या है?
दूत---जीवसिद्धि नाम है।
चाणक्य---तूने कैसे जाना कि क्षपणक मेरे शत्रुओं का पक्षपाती है?
दूत---क्योंकि उसने राक्षस मंत्री के कहने से देव पर्वतेश्वर पर विषकन्या का प्रयोग किया।
चाणक्य---( आप ही आप ) जीवसिद्धि तो हमारा गुप्त दूत है। ( प्रकाश ) हाँ, और कौन है?
दूत---महाराज! दूसरा राक्षस मंत्री का प्यारा सखा शकटदास कायथ है।
चाणक्य---( हँसकर आप ही आप ) कायथ कोई बड़ी बात नहीं है तो भी क्षुद्र शत्रु की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, इसी हेतु तो मैंने सिद्धार्थक को उसका मित्र बनाकर उसके पास रखा है। ( प्रकाश ) हॉ, तीसरा कौन है?
दूत---( हँसकर ) तीसरा तो राक्षस मंत्री का मानो हृदय ही पुष्पपुरवासी चंदनदास नामक वह बड़ा जौहरी है जिसके घर में मंत्री राक्षस अपना कुटुंब छोड़ गया है।
चाणक्य---( आप ही आप ) अरे। यह उसका बड़ा अंतरंग मित्र होगा; क्योंकि पूरे विश्वास बिना राक्षस अपना