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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४१०

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भारतेंदु-नाटकावली

कुटुंब यो न छोड़ जाता। ( प्रकाश ) भला, तूने यह कैसे जाना कि राक्षस मंत्री वहाँ अपना कुटुंब छोड़ गया है?

दूत---महाराज! इस 'मोहर' की अँगूठी से आपको विश्वास होगा। ( अँगूठी देता है )।

चाणक्य---( अँगूठी लेकर और उसमें राक्षस का नाम बाँचकर प्रसन्न होकर आप ही आप ) अहा! मैं समझता हूँ कि राक्षस ही मेरे हाथ लगा। ( प्रकाश ) भला, तुमने यह अँगूठी कैसे पाई? मुझसे सब वृत्तांत तो कहो।

दूत---सुनिए, जब मुझे आपने नगर के लोगो का भेद लेने भेजा तब मैंने यह सोचा कि बिना भेस बदले मैं दूसरे के घर में न घुसने पाऊँगा, इससे मैं जोगी का भेस करके जमराज का चित्र हाथ में लिए फिरता-फिरता चंदनदास जौहरी के घर में चला गया और वहाँ चित्र फैलाकर गीत गाने लगा।

चाणक्य---हॉ, तब?

दूत---तब महाराज! कौतुक देखने को एक पॉच बरस का बड़ा सुंदर बालक एक परदे के आड़ से बाहर निकला। उस समय परदे के भीतर स्त्रियों में बड़ा कलकल हुआ कि "लड़का कहाँ गया।" इतने में एक स्त्री ने द्वार के बाहर मुख निकालकर देखा और लड़के को झट पकड़ ले गई, पर पुरुष की उँगली से स्त्री की उँगली