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भारतेंदु-नाटकावली

( चिट्ठी लेकर सिद्धार्थक आता है )

सिद्धा०---जय हो महाराज की, जय हो, महाराज! यह शकट- दास के हाथ का लेख है।

चाणक्य---( लेकर देखता है ) वाह कैसे सुंदर अक्षर है! ( पढ़कर ) बेटा, इस पर यह मोहर कर दो।

सिद्धा०---जो आज्ञा। ( मोहर करके ) महाराज, इस पर मोहर हो गई, अब और कहिए क्या आज्ञा है।

चाणक्य---बेटा! हम तुम्हें एक अपने निज के काम में भेजा चाहते हैं।

सिद्धा०---( हर्ष से ) महाराज, यह तो आपकी कृपा है। कहिए, यह दास आपके कौन काम आ सकता है?

चाणक्य---सुनो, पहिले जहाँ सूली दी जाती है वहाँ जाकर फाँसी देनेवालों को दाहिनी ऑख दबाकर समझा देना* और जब वे तेरी बात समझकर डर से इधर-उधर भाग जायँ तब तुम शकटदास को लेकर राक्षस मंत्री के पास चले जाना। वह अपने मित्र के प्राण बचाने से तुम पर बड़ा प्रसन्न होगा और तुम्हे पारितोषक देगा, तुम उसको लेकर कुछ दिनों तक राक्षस ही के पास रहना और


  • चांडालों को पहले से समझा दिया था कि जो आदमी दाहिनी

आँख दबावे उसको हमारा मनुष्य समझकर तुम लोग झटपट हट जाना।