यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
द्वितीय अंक
स्थान-राजपथ
( मदारी आता है )
मदारी---अललललललल, नाग लाए सॉप लाए!
तंत्र युक्ति सब जानहीं, मंडल रचहिं बिचार।
मंत्र रक्षही ते करहिं, अहि नृप को उपकार॥
(* आकाश में देखकर ) महाराज! क्या कहा? 'तू कौन है?' महाराज! मैं जीर्ण विष नाम सँपेरा हूँ। ( फिर आकाश की ओर देखकर ) क्या कहा कि 'मैं भी सॉप का मंत्र जानता हूँ खेलूँगा?' तो आप काम क्या करते हैं, यह तो कहिए? ( फिर आकाश की ओर देखकर ) क्या कहा---'मैं राजसेवक हूँ?' तो आप तो सॉप के साथ खेलते ही है। ( फिर ऊपर देखकर ) क्या कहा 'कैसे?' मंत्र और जड़ी बिन मदारी और आँकुस बिन मतवाले हाथी का हाथीवान, वैसे ही नए अधिकार के संग्राम- विजयी राजा के सेवक---ये तीनो अवश्य नष्ट होते हैं। ( ऊपर देखकर ) यह देखते-देखते कहाँ चला गया? ( फिर ऊपर देखकर ) क्या महाराज! पूछते हो कि
- 'आकाश में देखकर 'ऊपर देखकर' का आशय यह है कि
मानो दूसरे से बात करता है।