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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४२६

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भारतेंदु-नाटकावली

'इन पिटारियो में क्या है?' इन पिटरियों में मेरी जीविका के सर्प हैं। ( फिर ऊपर देखकर ) क्या कहा कि 'मै देखूँगा?' वाह-वाह महाराज! देखिए-देखिए, मेरी बोहनी हुई, कहिए इसी स्थान पर खोलूँ? परंतु यह स्थान अच्छा नहीं है। यदि आपको देखने की इच्छा हो तो आप इस स्थान में आइए मैं दिखाऊँ। ( फिर आकाश की ओर देखकर ) क्या कहा कि 'यह स्वामी राक्षस मंत्री का घर है, इसमें मैं घुसने न पाऊँगा,' तो आप जायँ, महाराज! मैं तो अपनी जीविका के प्रभाव से सभी के घर जाता-आता हूँ। अरे क्या वह गया? ( चारो ओर देखकर ) अहा, बड़े आश्चर्य की बात है, जब मैं चाणक्य की रक्षा में चंद्रगुप्त को देखता हूँ तब समझता हूँ कि चंद्रगुप्त ही राज्य करेगा, पर जब राक्षस की रक्षा में मलयकेतु को देखता हूँ तब चंद्रगुप्त का राज गया सा दिखाई देता है, क्योकि---

चाणक्य ने लै जदपि बॉधी बुद्धिरूपी डोर सों।
करि अचल लक्ष्मी मौर्यकुल में नीति के निज जोर सों।
पै तदपि राक्षस चातुरी करि हाथ में ताकों करै।
गहि ताहि खींचत आपुनी दिसि मोहि यह जानी परै।

सो इन दोनों परम नीतिचतुर मंत्रियो के विरोध में नंदकुल की लक्ष्मी संशय में पड़ी है।