अप्रतिष्ठा करने के कारण भीम द्वारा कीचक के मारे जाने पर त्रिगर्तराज सुशर्मा ने मत्स्य राज्य पर एक ओर से आक्रमण किया और जब राजा विराट ससैन्य उधर उससे युद्ध करने चले गए तब कौरवगण दूसरी ओर से आक्रमण कर राजा विराट की साठ सहस्र गाएँ लेकर चल दिए। राजनगरी में केवल उत्तर कुमार था। अंत में अर्जुन उसे सारथी बनाकर स्वयं युद्ध में कौरवों को परास्त कर गोधन छुड़ा लाए। इसके अनंतर राजा विराट ने पांडवों का बहुत सम्मान किया और उत्तरा का अभिमन्यु से विवाह-संबंध स्थिर हुआ। यह सब कथा महाभारत में बहत्तर अध्यायो में वर्णित है। इस नाटक में केवल अर्जुन का कौरवो का परास्त कर गायो को छुड़ा लाना तथा फल स्वरूप उत्तरा-अभिमन्यु का विवाह स्थिर होना दिखलाया गया है।
व्यायोग में 'युद्ध का निदर्शन स्त्री-पात्र-रहित और एक ही दिन की कथा का होता है। नायक कोई अवतार या वीर होना चाहिए।' धनंजय-विजय स्त्री पात्र-रहित है, इसमें केवल युद्ध ही का निदर्शन है और एक ही दिन की कथा है। इसमें प्रसिद्ध वीर अर्जुन नायक है और आरंभ में युद्ध को प्रस्थान करने पर उसने कौरवो के बड़े महारथियों का परिचय उत्तर कुमार को स्वयं दिया। इसके अनंतर युद्ध प्रारम्भ होने पर उसका विवरण इन्द्र, विद्याधर तथा प्रतिहारी के कथोपकथन में बतलाया गया है। अंत में विजयी होकर अर्जुन राजा विराट से मिलते हैं। इस नाटक में पद्यभाग गद्य से अधिक है और अनुवाद भी बहुत अच्छा हुआ है।