पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४६

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५---सत्यहरिश्चंद्र

क---आख्यान तथा नाटक

संस्कृत साहित्य में आर्य क्षेमीश्वर कृत 'चंडकोशिक' और रामचंद्र कृत 'सत्यहरिश्चन्द्र नाटकम्' नाम के दो रूपक मिलते हैं जो राजा हरिश्चन्द्र की आख्यायिका लेकर निर्मित हुए है। यद्यपि भारतेन्दुजी का सत्यहरिश्चन्द्र नाटक इन दोनों में से किसी का पूरा अनुवाद नहीं है पर प्रथम का कुछ भाग इसमें अनूदित करके लिया गया है। इन सभी नाटकों का आधार एक प्रसिद्ध पौराणिक आख्यान है और उसमें कुछ हेर फेर कर सभी नाटकों की रचना हुई है। इस नाटक का मुख्य उद्देश्य सत्य की परीक्षा है। परीक्षक इंद्र-प्रेरित ऋषि विश्वामित्र हैं और परीक्षा देनेवाले राजा हरिश्चन्द्र हैं। कथा पौराणिक है, इससे कुछ बातें ऐसी भी आगई हैं जो साधारणतः असंबद्ध सी ज्ञात पड़ने लगती हैं पर वास्तव में वे वैसी हैं नहीं। इसकी भाषा भी बड़ी सुन्दर है तथा कथा के अनुकूल रखी गई है। मुहाविरेदार तथा व्यावहारिक भाषा प्रयोग से इसके पठन पाठन से मनोरंजन भी होता है।

सत्यहरिश्चन्द्र नाटक चार अंक में समाप्त हो गया है। नाटकों में कम से कम पाँच अंक होने चाहिए। इस नाटक का प्रधान रस वीर है। इसके सत्यवीर, दानवीर, कर्मवीर तथा युद्धवीर चार भेद होते हैं, जिनमें दो का राजा हरिश्चन्द्र में और तीसरे का विश्वामित्र जी में परिपाक हुआ है। इसके सिवा इसमें करुण, वीभत्स, हास्य तथा अद्भुत रस का भी समावेश है,