पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४५२

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मुद्राराक्षस

राजा---स्पष्ट क्यो नहीं कहता?

कंचुकी---महाराज! चंद्रिकोत्सव बंद किया गया है।

राजा---( क्रोध से )किसने बंद किया है?

कंचुकी---( हाथ जोड़कर ) महाराज! यह मैं नहीं कह सकता।

राजा---कहीं आर्य चाणक्य ने तो नहीं बंद किया?

कंचुकी---महाराज! और किसको अपने प्राणों से शत्रुता करनी थी?

राजा---( अत्यंत क्रोध से ) अच्छा, अब हम बैठेंगे।

कंचुकी---महाराज! यह सिंहासन है, बिराजिए।

राजा---( बैठकर क्रोध से ) अच्छा, कंचुकी! आर्य चाणक्य से कह कि "महाराज आपको देखा चाहते हैं।"

कंचुकी---जो आज्ञा।

[ बाहर जाता है

( एक ओर परदा उठता है और चाणक्य बैठा हुआ दिखाई पड़ता है )

चाणक्य---( आप ही आप ) दुष्ट राक्षस हमारी बराबरी करता है, वह जानता है कि---

जिमि हम नृप अपमान सों महा क्रोध उर धारि।
करी प्रतिज्ञा नंद नृप नासन की निरधारि॥
सो नृप नंदहि पुत्र सह नासि करी हम पूर्ण।
चंद्रगुप्त राजा कियो करि राक्षस-मद चूर्ण॥
तिमि सोऊ मोहि नीति-बल छलन चहत हति चंद।
पै मो आछत यह जतन वृथा तासु अति मंद॥