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भारतेंदु-नाटकावली

वह व्यर्थ चंद्रगुप्त को क्रोधित न करावेगा और चंद्रगुप्त भी उसकी बात जानता है, वह भी बिना बात चाणक्य का ऐसा अपमान न करेगा, इससे उन लोगो में बहुत झगड़े से जो बिगाड़ होगा तो पक्का होगा।

कर०---आर्य! और भी कई कारण है।

राक्षस---कौन?

कर०---कि जब पहिले यहाँ से राक्षस और कुमार मलयकेतु भागे तब उसने क्यो नहीं पकड़ा?

राक्षस---( हर्ष से ) मित्र शकटदास! अब तो चंद्रगुप्त हाथ में आ जायगा।

शकट०---अब चंदनदास छूटेगा, और आप कुटुंब से मिलेगे, वैसे ही जीवसिद्धि इत्यादि लोग क्लेश से छूटेंगे।

भागु०---( आप ही आप ) हॉ, अवश्य जीवसिद्धि का क्लेश छूटा।

मलय०---मित्र भागुरायण! अब मेरे हाथ चंद्रगुप्त आवेगा, इसमें इनका क्या अभिप्राय है?

भागु०---और क्या होगा? यही होगा कि यह चाणक्य से छूटे चंद्रगुप्त के उद्धार का समय देखते है।

राक्षस---अजी, अब अधिकार छिन जाने पर वह ब्राह्मण कहाँ है? कर०---अभी तो पटने ही में है।