मलय०---क्यो आर्य! यही क्यो प्रधान है? क्या चंद्रगुप्त और मंत्रियों से या आप अपना काम करने में असमर्थ है?
राक्षस---निरा असमर्थ है।
मलय०---क्यो?
राक्षस---यो कि जो आप राज्य सँभालते है या जिनका राज राजा और मंत्री दोनो करते हैं वह राजा ऐसे हों तो हों; परंतु चंद्रगुप्त तो कदापि ऐसा नहीं है। चंद्रगुप्त एक तो दुरात्मा है, दूसरे वह तो सचिव ही के भरोसे सब काम करता है, इससे वह कुछ व्यवहार जानता ही नहीं, तो फिर वह सब काम कैसे कर सकता है? क्योकि---
लक्ष्मी करत निवास अति प्रबल सचिव नृप पाय।
पै निज बाल-सुभाव सों इकहिं तजत अकुलाय॥
और भी--
जो नृप बालक सों रहत सदा सचिव के गोद।
बिन कछु जग देखे सुने, सो नहिं पावत मोद॥
मलय०---( आप ही आप ) तो हम अच्छे हैं कि सचिव के अधिकार में नहीं। ( प्रकाश ) अमात्य! यद्यपि यह ठीक है तथापि जहाँ शत्रु के अनेक छिद्र हैं तहाँ एक इसी सिद्धि से सब काम न निकलेगा।
राक्षस---कुमार के सब काम इसी से सिद्ध होंगे। देखिए,