पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४८१

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मुद्राराक्षस

मलय०---आर्य! मेरी जान में चंद्रगुप्त को और भी नहीं है।

राक्षस---आपने कैसे जाना कि चंद्रगुप्त को मंत्री-संकट संकट नहीं है?

मलय०---क्योकि चंद्रगुप्त के लोग तो चाणक्य के कारण उससे उदास रहते हैं, जब चाणक्य ही न रहेगा तब उसके सब कामों को लोग और भी संतोष से करेंगे।

राक्षस---कुमार, ऐसा नहीं है, क्योकि वहाँ दो प्रकार के लोग हैं---एक चंद्रगुप्त के साथी, दूसरे नंदकुल के मित्र, उनमें जो चंद्रगुप्त के साथी हैं उनको चाणक्य ही से दुःख था; नंदकुल के मित्रो को कुछ दुःख नहीं है, क्योकि वह लोग तो यही सोचते हैं कि इसी कृतघ्न चंद्रगुप्त ने राज के लोभ से अपने पितृकुल का नाश किया है, पर क्या करें उनका कोई आश्रय नहीं है इससे चंद्रगुप्त के आसरे पड़े है। जिस दिन आपको शत्रु के नाश में और अपने पक्ष के उद्धार में समर्थ देखेंगे उसी दिन चंद्रगुप्त को छोड़कर आपसे मिल जायँगे, इसके उदाहरण हमी लोग है।

मलय०---आर्य! चंद्रगुप्त पर चढाई करने का एक यही कारण है कि कोई और भी है?

राक्षस---और बहुत क्या होंगे एक यही बड़ा भारी है।