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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४९६

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भारतेंदु-नाटकावली

कहा था वह देकर प्रसन्न करना। यह लोग प्रसन्न होंगे तो अपना आश्रय छूट जाने पर सब भॉति अपने उपकारी की सेवा करेंगे। सच्चे लोग कहीं नहीं भूलते तो भी हम स्मरण कराते हैं। इनमें से कोई तो शत्रु का कोष और हाथी चाहते हैं और कोई राज चाहते हैं। हमको सत्यवादी ने जो तीन अलंकार भेजे से मिले। हमने भी लेख अशून्य करने को कुछ भेजा है सो लेना। और जवानी हमारे अत्यंत प्रामाणिक सिद्धार्थक से सुन लेना।*

मलय०---मित्र भागुरायण! इस लेख का आशय क्या है?

भागु०---भद्र सिद्धार्थक! यह लेख किसका है?

सिद्धा०---आर्य! मैं नहीं जानता।

भागु०---धूर्त! लेख लेकर जाता है और यह नहीं जानता कि किसने लिखा है, और संदेसा किससे कहेगा?

सिद्धा०---( डरते हुए की भॉति ) आपसे।

भागु०---क्यों रे! हमसे?

सिद्धा०---आपने पकड़ लिया। हम कुछ नहीं जानते कि क्या बात है।

भागु०---( क्रोध से ) अब जानेगा। भद्र भासुरक! इसको बाहर


  • यह वही लेख है जिसको चाणक्य ने शकटदास से धोखा देकर

लिखवाया था और अपने हाथ से राक्षस की मुहर उस पर करके सिद्धार्थक को दिया था।