पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४९७

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मुद्राराक्षस

ले जाकर जब तक यह सब कुछ न बतलावे तब तक खूब मारो।

पुरुष---जो आज्ञा ( सिद्धार्थक को बाहर लेकर जाता है और हाथ में एक पेटी लिए फिर आता है ) आर्य! उसको मारने के समय उसके बगल में से यह मुहर की हुई पेटी गिर पड़ी।

भागु०---( देखकर ) कुमार! इस पर भी राक्षस की मुहर है।

मलय०---यही लेख अशून्य करने को होगी। इसकी भी मुहर बचाकर हमको दिखलायो।

( भागुरायण पेटी खोलकर दिखलाता है )

मलय०--अरे! यह तो वही सब आभरण हैं जो हमने राक्षस को भेजे थे। निश्चय यह चंद्रगुप्त को लिखा है।

भागु०---कुमार! अभी सब संशय मिट जाता है। भासुरक! उसको और मारो।

पुरुष---जो आज्ञा। ( बाहर जाकर फिर आता है ) आर्य! हमने उसको बहुत मारा है। अब कहता है कि अब हम कुमार से सब कह देंगे।

मलय०---अच्छा, ले आओ।

पुरुष---जो कुमार की आज्ञा। ( बाहर जाकर सिद्धार्थक को लेकर आता है )