पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५०३

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मुद्राराक्षस

राक्षस---भद्र सिद्धार्थक! क्या यह सत्य है?

सिद्धा०---( लज्जा नाट्य करके ) बहुत मार खाने के डर से मैंने कह दिया।

राक्षस---कुमार! यह झूठ है, मार खाने से लोग क्या नहीं कह देते?

मलय०---भागुरायण! चिट्ठी दिखला दो और संदेशा वह अपने मुँह से कहेगा।

( भागुरायण चिट्ठी खोलकर 'स्वस्ति कहीं से कोई किसी को' इत्यादि पढ़ता है )

राक्षस--कुमार! कुमार! यह सब शत्रु का प्रयोग है।

मलय०---करने को आर्य ने जो आभरण भेजे हैं वह शत्रु कैसे भेजेगा? ( आभरण दिखलाता है )।

राक्षस---कुमार! यह मैने किसी को नहीं भेजा। कुमार ने यह मुझको दिया और मैंने प्रसन्न होकर सिद्धार्थक को दिया।

भागु०---आमात्य! क्या ऐसे उत्तम आभरणो का, विशेष कर क्या अपने अंग से उतारकर कुमार की दी हुई वस्तु का यह पात्र है?

मलय०---और संदेश भी बड़े प्रामाणिक सिद्धार्थक से सुनना, यह आर्य ने लिखा है।

राक्षस---कैसा संदेश और कैसी चिट्ठी? यह हमारा कुछ नहीं है!