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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५०२

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भारतेंदु-नाटकावली

के हेतु चंद्रगुप्त से मिले हैं वही हमको घेरे रहेंगे। ( प्रकाश ) आर्य, अब कुसुमपुर से कोई आता है या वहाँ जाता है कि नहीं?

राक्षस---अब यहाँ किसी के आने-जाने से क्या प्रयोजन। पाँच- छः दिन में हम लोग ही वहाँ पहुँचेंगे।

मलय०---( आप ही आप ) अभी सब खुल जाता है। ( प्रगट ) जो यही बात है तो इस मनुष्य को चिट्ठी लेकर आपने कुसुमपुर क्यों भेजा था?

राक्षस---( देखकर ) अरे! सिद्धार्थक है? भद्र! यह क्या?

सिद्धा०---( भय और लज्जा नाट्य करके ) अमात्य! हमको क्षमा कीजिए। अमात्य! हमारा कुछ भी दोष नहीं है, मार खाते-खाते हम अापका रहस्य छिपा न सके।

राक्षस---भद्र! वह कौन सा रहस्य है यह हमको नहीं समझ पड़ता।

सिद्धा०---निवेदन करते हैं, मार खाने से। ( इतना ही कह लज्जा से नीचा मुँह कर लेता है )

मलय०---भागुरायण! स्वामी के सामने लज्जा और भय से यह कुछ न कह सकेगा, इससे तुम सब बात आर्य से कहो।

भागु०---कुमार की जो आज्ञा। अमात्य! यह कहता है कि अमात्य राक्षस ने हमको चिट्ठी देकर और संदेश कह कर चंद्रगुप्त के पास भेजा है।