में वे पुराणों से कहाँ तक कलहप्रिय ज्ञात होते हैं इसपर विशेष रूप से तो नहीं कह सकता पर तब भी वे कहीं इस स्वभाव के मुझे नहीं मिले। वे विरक्त थे, इससे दक्ष की संतानों को उलटा उपदेश देकर वन में विदा कर दिया और स्वयं शापित होकर घूमने लगे। दुष्टो के संहार कराने में यह सदा दत्तचित्त रहते थे। संस्कृत साहित्य में, माघ आदि काव्यों में, ये ऋषिवत् ही चित्रित हैं, यद्यपि उनमें भी वे दुष्टो के नाश कराने ही के कार्य में लगे हुए वर्णित हैं। इस विचार से नारद जी का चित्रण ऋषिवत् करना ही उत्तम हुआ है और उनसे इंद्र को जो उपदेश दिलाया गया है वह बालको के लिए उपयोगी है।
सभी पात्रो का चरित्र चित्रण उनके स्वभावानानुकूल किया गया है और वह उनके कार्य तथा कथन आदि से स्पष्ट है।
ग---चंडकौशिक का आधार
भारतेंदु जी ने उपक्रम में चंडकौशिक का उल्लेख किया है और एक स्थान पर पाद टिप्पणी में लिखा भी है कि इसमें चंडकौशिक के श्लोक उद्धृत किए हैं। सत्य हरिश्चंद्र चंडकौशिक का अनुवाद कहा ही नहीं जा सकता क्योकि कथावस्तु में घटना-परिवर्तन कर दिया गया है। चंडकौशिक का जो आधार है वही सत्यहरिश्चंद्र का भी हो सकता है क्योंकि यह कथा बहुत प्रसिद्ध है। इसलिए उपक्रम में चंडकौशिक को सत्य-हरिश्चंद्र का आधार न कह कर भी उसका केवल उल्लेख करना यही सूचित करता है कि भारतेंदुजी ने इसे पढ़कर ही अपना ग्रंथ लिखा है और उनकी अद्भुत स्मरण शक्ति ने जो