पुरुष---अब तो यह बैठे हैं तो अब आर्य चाणक्य की आज्ञा पूरी करें। ( राक्षस की अोर न देखकर अपने गले में फॉसी लगाना चाहता है )
राक्षस---( देखकर आप ही आप ) अरे यह फॉसी क्यो लगाता है? निश्चय कोई हमारा सा दुखिया है। जो हो, पूछें तो सही। ( प्रकाश ) भद्र, यह क्या करते हो?
पुरुष---( रोकर ) मित्रो के दुःख से दुखी होकर हमारे ऐसे मंदभाग्यों का जो कर्तव्य है।
राक्षस---( आप ही आप ) पहले ही कहा था, कोई हमारा सा दुखिया है। ( प्रकाश ) भद्र, जो अति गुप्त वा किसी विशेष कार्य की बात न हो तो हमसे कहो कि तुम क्यो प्राण त्याग करते हो?
पुरुष---आर्य! न तो गुप्त ही है न कोई बड़े काम की बात है; परंतु मित्र के दुःख से मैं अब क्षण भर भी ठहर नहीं सकता।
राक्षस---( आप ही आप दुःख से ) मित्र की विपत्ति में हम पराए लोगों की भाँति उदासीन होकर जो देर करते हैं मानो उसमें शीघ्रता करने की यह अपना दुःख कहने के बहाने शिक्षा देता है। ( प्रकाश ) भद्र! जो रहस्य है तो हम सुना चाहते हैं कि तुम्हारे दुःख का क्या कारण है?